(X Gay Girlish Feeling Story)
X गे गर्लिश फीलिंग स्टोरी में मुझे शुरू से औरत बनने का शौक था। लेकिन कभी मेरी हिम्मत नहीं हुई। मेरी मां का देहांत हुआ तो सारा बोझ मेरे ऊपर आ पड़ा। फिर मेरी जिंदगी बदल गई. X Gay Girlish Feeling Story
दोस्तो, आज मैं आपको अपने जीवन की ऐसी घटना बताने जा रहा हूं जो बहुत समय से मेरे अंदर दबी हुई थी।
मैंने इस बारे में कभी किसी को नहीं बताया और न कभी हिम्मत हुई।
इसलिए मैं अन्तर्वासना के माध्यम से आप लोगों को अपनी आपबीती बताने जा रहा हूं।
बचपन से ही मुझे औरत जैसा बनने का मन था.
लेकिन इस दुनिया में कोई भी तुम्हें समझ नहीं सकता।
अगर किसी से शेयर भी करो तो वो ऐसे लोगों को पागल, हिजड़ा, किन्नर जैसे शब्दों से सम्बोधित करने लगता है।
लगता है जैसे मानो सब दुनिया सही है और बस मैं ही गलत पैदा हो गया हूं।
खैर, X गे गर्लिश फीलिंग स्टोरी में आगे बढ़ते हैं।
तो काफी दिन से मुझे औरत जैसे बनाने का मन हो रहा था लेकिन मम्मी पापा कहीं भी नहीं जा रहे थे।
फिर ऊपर से यह कोविड की महामारी आ गयी और सब कुछ रुक गया।
एक दिन अचानक मम्मी को बुखार आ गया और उन्हें कोविड हो गया।
डॉक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी वह बच नहीं पायी और उनका देहांत हो गया।
उनके जाने के बाद काफी अकेले पड़ गए थे पापा।
मेरी पढ़ाई भी बंद थी क्योंकि कॉलेज भी बंद थे।
अब सारा घर का काम मैं ही करता था।
ऐसा करते-करते 6 महीने बीत गए और ज़िंदगी भी अब धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार पकड़ रही थी।
मेरा कॉलेज अभी भी बंद था और पापा दुकान पर जाने लगे थे।
एक दिन सुबह पापा का नाश्ता देकर मैं झाड़ू-पौंछा करने लग गया।
हालाँकि इस काम में मुझे बहुत अच्छा लगता था क्यूंकि ऐसा महसूस होता था जैसे अब मैं ही मम्मी हूँ।
उन्हीं की तरह सुबह से शाम तक घर का सारा काम करता, बस कपड़े नहीं पहन पाता था।
पापा नाश्ता कर जल्दी दुकान चले गए और मैं घर के काम में बिजी हो गया।
सफाई करने के बाद मैंने सोचा बहुत दिन हो गए, आज अलमारी में सब कपड़े ठीक से रख देता हूँ।
मैं सारे कपड़ों की तह लगा रहा था तभी नज़र मम्मी के कपड़ों पर पड़ी और मेरे अंदर की स्वाति जाग गयी।
रोक नहीं पायी मैं खुद को और ब्रा पैंटी उठा कर नहाने चली गयी।
नहाने के बाद मैंने ब्रा पहनी और मेरी चूची का उभार साफ दिखने लगा मानो जैसे अभी अभी किसी बच्चे को दूध पिलाया हो।
सच कहूं तो मेरी चूचियां ब्रा पहनने के बाद बिल्कुल औरत जैसी ही लगती हैं चाहे अब कोई माने या ना माने लेकिन सच यही है।
फिर मैंने पैंटी पहनी तो मन और भी हिचकोले मारने लगा।
फिर अलमारी में से मम्मी का एक सुंदर सा सूट-सलवार निकाला और पहन लिया।
मेरे अंदर की लड़की अब पूरी जाग चुकी थी।
मैंने सोचा पापा तो शाम तक आएंगे तो आज सारा दिन में स्वाति ही रहूंगी।
बहुत खुश थी मैं आज।
सूट के ऊपर से मेरी चूचियां मम्मी जैसी लग रही थीं और मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।
मैंने ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर खुद को देखा तो विश्वास नहीं हो रहा था।
झट से मम्मी की लिपस्टिक उठाई और लगा ली और फिर काजल भी लगा लिया।
पैरों में मम्मी की पायल पहन ली और चल कर देखा तो छन्न छन्न की आवाज़ से में खुद को रोक नहीं पायी।
इस तरह से औरत बनकर मैं तो ख़ुशी से झूम उठी।
X गे गर्लिश फीलिंग के बाद अब मैंने सोचा कि अब बाकी का घर का काम करती हूँ।
मैं झाड़ू उठा कर साफ़-सफाई करने लगी।
ड्राइंग रूम से बाहर कूड़ा निकल कर मैं बाहर आँगन में झाड़ू लगा रही थी।
मैं गेट खोल कर कूड़ा बाहर झाड़ू से साफ़ कर रही थी तभी अचानक से सोसाइटी का गार्ड पता नहीं कहाँ से आ गया।
उसे देख कर मैं डर गयी।
मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या करूँ।
इतने में उसने मुझे काफी अच्छे से देख लिया था और उसकी नज़र मेरे सुडौल स्तनों में अटक गई थी।
मैं झट से पलटी और दरवाज़ा बंद करके अंदर चली गयी।
दोस्तो, उस गार्ड की उम्र लगभग 65 साल के करीब रही होगी लेकिन देखने में वो कम ही लगता था।
अभी मैं खुद को संभल भी नहीं पायी थी कि घर की बेल बज गई।
मेरे पास अब न कपड़े बदलने का टाइम था और न ही दरवाज़ा खोलने की हिम्मत।
परदे के पीछे से झाँका तो वही गार्ड अंकल थे।
मैंने सोचा इन्होंने देख ही लिया है, कहीं पापा से शिकायत न कर दें।
इसलिए बात को यहीं तक रखना चाहती थी।
मैंने दरवाज़ा खोल कर उनसे बात करनी चाही।
अंकल कुछ भी नहीं बोल रहे थे, बस मेरी चूची पर उनकी नज़र गड़ी थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ अंकल? पापा घर पर नहीं है।
वो बोले- बिटिया रानी, ऐसी चूची तो मैंने पहली बार देखी हैं। बीवी को गुज़रे काफी समय हो गया, बहुत मन करता है। तुम्हारी चूचियों में तो दूध भी बहुत भरा लगता है, इनको किसी भले आदमी को पिला दो, तुम भी खुश और वो भी!
मैं बोली- अंकल प्लीज, किसी को मत बताना, मैं आज के बाद नहीं पहनूंगी।
लेकिन अंकल कहां सुनने वाले थे।
बोले- तुम मेरी बीवी कुसुम की तरह हो, आज से तुम मेरी कुसुम और मैं तुम्हारा शंकर!
कहते हुए अंकल जल्दी से दरवाजे के अंदर आ गए और झट से मेरी कुर्ती में हाथ डाल कर उसे ऊपर उठा दिया।
मैं कुछ भी नहीं बोल पायी।
फिर उन्होंने ब्रा के हुक खोल कर मेरी चूचियों को जोर-जोर से मसलना चालू कर दिया.
और मेरे मुंह से दर्द भरी आह्ह … निकल गई।
फिर उन्होंने मुझे घुमा लिया और लंड मेरी गांड पर लगाकर चूचियों को आगे से जोर-जोर से भींचने लगे।
उनका लंड मुझे मेरी गांड पर साफ महसूस हो रहा था।
फिर वो मुझे खींचकर अंदर ले गए और सोफे पर जा बैठे।
फिर मुझे उनकी जांघ पर बैठने का इशारा किया।
मैं जा बैठी।
मुझे बिठाकर उन्होंने मेरी चूचियों पर मुंह लगा दिया।
मेरे उभरे हुए निप्पलों को ऐसे चूसा की मेरी तो चीख ही निकल गई दर्द के मारे।
वो जोर-जोर से मेरे निप्पलों को पीने लगे।
काफी देर तक वो मेरी चूची पीते रहे और मुझे भी अच्छा लगने लगा।
फिर उन्होंने मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया।
पहले मुझे अजीब लगा लेकिन फिर मैं भी अंकल का साथ देने लगी।
अंकल मेरे बदन पर ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर हाथ फिरा रहे थे।
मुझे अब काफी मजा आने लगा था।
मेरा मन अंकल का लंड पकड़ने का कर रहा था जो कि मेरी गांड के नीचे दबा हुआ झटके पर झटके दे रहा था।
अंकल मेरी कमर को सहलाने लगे।
वो कभी मेरी गर्दन को चूमते तो कभी गालों को। वो मेरे बदन में समाने की कोशिश कर रहे थे।
मुझे बहुत अलग ही अहसास हो रहा था।
मैं समझ नहीं पा रही थी कि ये मुझे क्या हो रहा है, मुझे इतना अच्छा कैसे लग रहा है एक बूढ़े आदमी की बाहों में ऐसे खुद को सौंपकर।
उनके सख्त हाथ मेरे कोमल बदन पर अलग ही उत्तेजना पैदा कर रहे थे।
लेकिन जो भी था उस वक्त मैं उन पलों का आनंद लेने लगी थी।
ऐसा लग रहा था कि मैं सच में ही एक औरत हूं जो मर्द के लिए ही बनी है।
अंकल जिस तरह से मुझे प्यार कर रहे थे लग रहा था कि मैं यही चाह रही थी।
अंकल जोर-जोर से मेरी चूचियां भींचते ही जा रहे थे।
फिर अचानक मुझे नितम्ब पर कुछ गर्म लावा जैसा गिरने का अहसास हुआ।
बहुत जोर की आह्ह … के साथ वे बोले- कुसुम तुम मेरी हो!
फिर मेरी दोनों चूचियों के बीच में अपना मुंह रख कर मुझे कमर से जोर से पकड़ कर गले लगा लिया।
फिर वो उठ कर चले गए और मुझे अपनी कुसुम बोलते रहे।
उन्होंने यह जो हरकत मेरे साथ की इससे मेरे अंदर की औरत कामोत्तेजित हो उठी।
अब मैं तड़पने लगी।
कुछ देर मैं वहीं सोफे पर बैठी रही और उस अहसास को जीती रही।
फिर पता नहीं कब मेरी आंख लगी और मैं सो गयी।
जब आंख खुली तो शाम के 8 बज रहे थे और लाइट नहीं थी।
इतने में दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई और पापा की आवाज़ सुनाई दी।
अब मेरी जान निकल गयी।
लग रहा था कि अब तो मेरा पिटना तय है।
पापा ने फिर आवाज़ दी तो मैं हड़बड़ाते हुए बोल गई- आयी!!
मुंह से ‘आयी’ तो निकल गया लेकिन अब मेरा सारा खून सूख गया जैसे!
डर के मारे सुसू निकलने को हो गया।
लेकिन दरवाजा खोलना भी जरूरी था।
अंधेरे का फायदा उठाते हुए मैंने ऐसे ही दरवाजा खोल दिया।
फिर मैं तेजी से बाथरूम की तरफ भागी।
पीछे से पापा की आवाज आई- क्या हुआ?
मैं- तेजी से पेशाब आया है, करके आती हूं!
मैं तो जैसे ‘स्वाति’ से बाहर ही नहीं निकल पाई।
फिर मैंने अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया और तेजी से कपड़े उतार फेंके।
मैं बाहर आई और नॉर्मल होने की कोशिश करने लगी।
तभी लाइट आ गई और मैं भगवान को धन्यवाद देने लगी।
पापा ने देखा कि खाना नहीं बना था तो बोले- आज थक गए क्या?
मैं डर कर बोली- आंख लग गयी थी।
वे बिल्कुल भी गुस्सा नहीं हुए, शायद उन्होंने मुझे देखा नहीं था, या देख कर अनजान बन रहे थे।
जो भी था मैंने जल्दी से गैस पर दाल-चावल बनाए और जब तक वो नहा कर आये सब तैयार था।
हमने साथ बैठ कर खाना खाया और 10 बजे पापा टीवी देख कर सोने चले गए।
मैं सारा किचन मम्मी की तरह समेट कर थोड़ी देर बाद गयी तो पापा सो चुके थे।
शायद थक गए थे।
जैसे ही मैं उनके बगल में लेट रही थी कि उनकी आंख खुल गयी और बोले- लाइट तो बंद कर दो।
मैं हड़बड़ाहट में उठी और लाइट बंद करने के लिए गयी तो ड्रेसिंग टेबल में खुद को देख कर मैं सहम गयी।
मैं ब्रा उतरना भूल गयी थी और तब से पापा के सामने टी शर्ट के अंदर ब्रा पहनी थी और मेरी चूची का आकार-प्रकार सब अच्छे से दिख रहा था।
जल्दी से लाइट बंद करके मैं लेट गयी।
मैंने सोचा कि जब पापा सो जायेंगे तब उतार दूंगी।
थोड़ी देर बाद लगा पापा सो गए तो मैं दूसरे कमरे में जा कर ब्रा उतार आयी और फिर उनके बगल में सो गयी।
रात को अचानक लगभग तीन बज रहे होंगे या चार पता नहीं, पापा का हाथ मेरे ऊपर था।
ध्यान दिया तो उनकी एक टांग भी मेरे नितम्ब के ऊपर थी।
पापा ऐसे ही सोते हैं तो मुझे कुछ भी अजीब नहीं लगा।
वे सो रहे थे लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरी एक चूची पकड़ रखी थी।
मैं बिना हिले चुपचाप लेटी रही यह सोचकर कि शायद गलती से ऐसा होगा या सपने में मम्मी को देख रहे होंगे।
पता नहीं कितनी देर मैं उसी तरह रही और कब सोई पता नहीं चला।
सुबह उठी तो पापा उठ चुके थे और तैयार थे दुकान जाने के लिए। उन्होंने मुझे देख कर आवाज़ दी- सुनो शिखा!!
मैं हैरान! पापा क्या बोल गए!
शिखा मम्मी का नाम था।
मैंने अनसुना करते हुए कहा- जी!
इस बार भी ‘पापा’ नहीं निकला मेरे मुंह से।
मैंने देखा तो वह मंद-मंद मुस्करा रहे थे। मैं समझ गयी इन्होंने सब देख लिया और सब समझ गए हैं।
फिर बोले- शिखा तुम आज वह गुलाबी वाली साड़ी पहन कर तैयार रहना, हम बाहर खाना खाने जायेंगे शाम को।
मैं बोली- आप ये मुझे मम्मी के नाम से क्यों बुला रहे हो?
पापा मुस्करा कर बोले- क्योंकि तुम अब से शिखा ही हो, समझीं!
और वो जैसे मम्मी को प्यार से देखते थे वैसे ही मुझे भी देखा और चले गए।
मैं समझ गयी कि अब मुझे इनके सामने शिखा बन कर ही रहना होगा। आखिर वो भी तो इंसान ही हैं, उनका भी मन होगा। काफी समय भी गुज़र गया था मम्मी को गए।
मैं नहाने के लिए जाने लगी तोह देखा बेड पर मम्मी की गुलाबी रंग की साड़ी पहले से रखी थी। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ। पापा ने पहले से सब सोचकर रखा हुआ था।
आज मैं बहुत खुश हूँ। मैं पापा के साथ उनकी बीवी की तरह रह रही हूं। मेरी दिल की तमन्ना पूरी हो गई थी।
तो दोस्तो, उस दिन पहली बार मुझे औरत बनने का मौका मिला।
उसके बाद काफी कुछ हुआ।
वो सब मैं आपको अपनी अगली कहानी में बताऊंगी।
आपको मेरी यह X गे गर्लिश फीलिंग स्टोरी कैसी लगी मुझे जरूर बताना।
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